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...या चूक गए शहर के "पाठक" और "विद्यार्थी" ?

माफ़ कीजियेगा... अब शायद बात हाथ से निकल चुकी है!

एक राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त और पुरस्कृत विद्वान लिखते हैं   "कल पढ़ा था कि जनक और एक ऋषि से बात कर रहे थे। जनक नें पूछा, प्रकाश कौन देता है। ऋषिवर बोले सूर्य। सुर्य न हो तो चंद्रमा चंद्रमा न हो तो, ध्वनि, पुकार के सहारे मंज़िल तक पहुँचा जा सकताहै ध्वनि भी न हो तो आत्मा का प्रकाश जनक चुप हो गए। लेकिन आज तो सूर्य चंद्रमा पर धूल धुआ छाए हैं। आवाज़ें बंद कर दी गईं। आत्मा ही नहीं बची तो प्रकाश कहां से आएगा। पता नहीं जनक यह पूछते तो ऋषिवर क्या कहते"। जिस प्रकार राजा जनक की चर्चा में ऋषिवर अनाम हैं उसी तरह यहाँ विद्वत शिरोमणि का जिक्र जरुरी नहीं लेकिन देश के राजनैतिक हालातों में ज्ञान-विज्ञानं और साहित्य के बौद्धिक क्षरण का मूल्याङ्कन जरुरी हो जाता है| यह मूल्याङ्कन इसलिए भी जरुरी है क्योंकि प्रमाणिकता और परिभाषा गढ़ रहे महानुभावों को अपने कहने और जीने का भेद साफ़ हो सके| मुजफ्फर नगर की ऐतिहासिक विरासत एक होने को अग्रसर एक ऋषिवर हैं, उनकी देखभाल में सेंट्रल पोल्लुशन कंट्रोल बोर्ड बना, इंजिनियर थे इसलिए बोर्ड की स्थापना हुई तो मेम्बर सेक्रेटरी भी बने, सरकार के तकनीकी सलाहकार

कानपुर में बाईस एकड़ की ऐतिहासिक झील 'लापता'

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गर्मी में पानी की भीषण किल्लत के बीच कानपुर की नर्वल तहसील में 22 एकड़ की झील 'लापता' हो गई है। इस झील को माफिया ने पाट दिया है और यहां अब खेती होती है। झील के नाम पर फिलहाल रहनस गांव में मकानों के पीछे एक छोटा सा तालाब बचा है। ग्रामीणों के अनुसार, अब तो यहां बारिश का पानी भी नहीं रुकता। जबकि एक वक्त में झील का फैलाव करीब चार किमी आगे गंगा तट तक था। सरकारी रेकॉर्ड में सरकारी रेकॉर्ड के अनुसार, सरसौल ब्लॉक के रहनस गांव की झील का क्षेत्रफल करीब 22 एकड़ है। आराजी नंबर 771 में एरिया 0.414 हेक्टेयर, नंबर 794 में 0.727, नंबर 795 में 0.965, नंबर 796 में 0.922, नंबर 889 में 2.294, नंबर 828 में 2.591 और नंबर 841 में 0.835 हेक्टेयर एरिया है। यह पूरा एरिया करीब 8.748 हेक्टेयर है यानी करीब 22 एकड़। इतिहास में है जिक्र 1909 के गजेटियर ऑफ कानपुर में अंग्रेज ऑफिसर एचआर नेविल ने इसे कानपुर की सबसे बड़ी झीलों में एक शुमार करते हुए लिखा है, रहनस की झील में सारस और अन्य पक्षियों का बसेरा था। यहां नावें चलती थीं। झील बारिश में कई गांवों को पार कर गंगा तक फैल जाती थी। यहां लोग पिकनिक मनाने

......या चूक गए शहर के "पाठक" और "विद्यार्थी"?

देश को देश की सत्ता सरकार के साथ साथ कानून और संस्कृति का भी सम्मान करना चाहिए| आज की गाली गलौज की राजनीति देश की बदहाली की अहम् वजह है| इसके चलते युवा इस राजनीति में सिर्फ मौके की तलाश में लगा नजर आता है| आज युवा को देश और राष्ट्रवाद के लिए दीनदयाल के आदर्श नहीं बल्कि दीनदयाल ग्राम विकास योजनाओं के प्रोजेक्ट चाहिए| दीन दयाल ग्राम विद्युतीकरण योजना की ठेकेदारी चाहिए| उसको हासिल करने के लिए वह देना और लेना दोनों करने में गुरेज नहीं करता| उस पर भी तुर्रा यह है कि वही युवा भ्रष्टाचार के खिलाफ अवाम की आवाज भी बना बैठा है| लेकिन इतना तो तय है कि देश का ताना-बाना तो वह युवा ही बनाएगा| आज उस युवा के सामने दम तोडती नैतिकता का संकट है| आज युवा के सामने रोटी रोजगार का संकट है| पिछले तीस सालों की सरकारों ने युवाओं के लिए भारी जीवन संकट खड़ा किया है| आज सट्टेबाजी कानपुर के सबसे बड़े रोजगार में से है| आज गुटखे ने कैंसर के अस्पताल खड़े करवा दिए| जाहिर है कि हमारे अपने इरादे इतने बुलंद हो चुके हैं कि आजू-बाजु चाहे जो मरे कोई फर्क नहीं पड़ता| किसी के साथ कोई भावना बनाने के लिए विज्ञापन प्रचार ज्यादा अह

पानी का पारंपरिक ज्ञान और पानीदारों की जुमलेबाजी!

पानी तो जमीन की जान है, उसके बारे में सरकारी हीला हवाली में गाँव-गाँव और शहर-शहर बदहाली का आलम है, कर्जा लेकर घी पीने का दौर चल रहा है| अब जमीन और पानी के साथ साथ हवा में भी जहर घोला जा रहा है| ऐसा लगता है कि हम लोग सिर्फ सरकारी कवायदों के उम्मीदवार बन के रह गए हैं| आज से कुछ साल पहले पानी के गहराते संकट का एक शिकार गया शहर भी था| वहां पर भूगर्भ जल स्तर गिरने और नदियों की बदहाली का संकट कानपुर से कम तो नहीं था| लेकिन  Ravindrakumar Pathak  जी ने वहां एक नजीर पेश की| उन्होंने शा सन-प्रशासन, सरकार और अवाम को साथ लेकर कम से कम दो दर्जन तालाबों को जीवनदान दिया| लगभग पूरे गया शहर में पानी की व्यवस्था में उनकी पहल देश में अद्वितीय उदहारण है| उन्होंने जल प्रबंधन के पारंपरिक ज्ञान से अवाम को भरपूर पानी की सौगात दी| कानपुर में एकदम साफ़ है कि पानी की कहानी महज जुमलेबाजी बन के रह गयी है| कभी किसी ने कह दिया तो कभी किसी ने लिख दिया, इतने भर से तो कुछ हासिल होने वाला नहीं| स्थानीय समुदायों में जल प्रबंधन का पारंपरिक ज्ञान लुप्त हो रहा है और जो बचा भी है वो सरकारों के लिए किसी काम का नहीं... सरकारी

1857: क्या क्रांति में दलित राजनीति का साझा इतिहास नहीं है!

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संघर्षों के साए में ही असली आज़ादी चलती है , इतिहास उधर मुड जाता है जिस ओर जवानी चलती है | श्रीमान लालजी निर्मल ने सवाल उठाया है कि  लोगों को अपने गौरवशाली अतीत पर नाज है ,कतिपय लोगों को अपने वर्तमान पर फख्र है ।दलित किस पर नाज करें !  निर्मल जी को मेरा जवाब है कि इस देश के दलित वर्ग को अपने संघर्षों पर गर्व करना चाहिए | शोषण के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई पर नाज करना चाहिए | सभी दलित जातियों ने देश की बागडोर हाथ में लेकर देश के लिए कुर्बानियां दी हैं | संकट के समय कौम  और देश दोनों  अपने बीच से लीडर पैदा करते है | जिन कौमों ने संघर्ष किया है, इस देश का वर्तमान उन्ही के संघर्षों से बना है|    चन्द्रगुप्त मौर्य से राजा मार्तण्ड वर्मा से लेकर सुहैल देव पासी की कहानियां आज भी अवाम के लिए प्रेरणा स्रोत हैं | वाल्मीकि और व्यास की रामायण और महाभारत आज भी लोकमानस की प्रमुख प्रेरणा है | अगर शोषक और शोषित के फर्क से समाज का वर्गीकरण करना है तो 1857 की नजीर सामने रखने की जरुरत हैं जब मातादीन भंगी ने सेकंड बंगाल कैवलरी में रहते हुए सैनिकों को भड़काया और क्रांति हुई | यह युद्ध दुनिया की सभ्यताओं

कानपुर: विकास के सामने बेदम और बदहाल गाय बचेगी तो शहर बचेगा!

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प्रिय अतुल जी और रवि शुक्ला, आज हमने परमट पर मृतक गाय के लिए तेरहवीं और एक सद्भावना सभा का आयोजन किया| परमट पर बंसी बाबा ने हमे बहुत सपोर्ट किया और हमने गाय के दूध से बनी खीर खिला कर लोगों को गौसेवा के लिए संकल्पबद्ध होने की अपील भी की| आज सोमवार था इसलिए वहां भीड़ भी ठीकठाक थी, कुछ छः सौ लोगों ने खीर का प्रसाद लिए और कुछ लोगों से साथ निभाने की कसमें वादे भी किये| वहां दोस्त सेवा संस्थान के रवि शुक्ला जी ने दो ठोस बातें कहीं, एक तो ये कि कि संवेदना और सद्भावना के बगैर गाय की बात करना बेकार है| दूसरी बात ये कि कारोबारी मुनाफे और मजबूरी के चलते बेघर गायें बहुत भारी मुश्किल में हैं| इसलिए गाय के प्रति संवेदना एक अनिवार्य विषय है लेकिन, अपरिमेय आदर्शवाद से बच कर चलना भी समझदारी जैसा ही माना जा रहा है| जाहिर है कि एक दूसरे को, शहर मोहल्ले को नजदीक से देखने समझने की जरुरत है| यह हमारी बसावट की बुनियादी बातें हैं| रविकान्त शुक्ला जी ने इन्ही मामलों में गाय का मुद्दा प्रमुखता से उठाया है| उनका कहना है कि नगर निगम तो गायों के लिए बने चरागाहों की जमीनों की मेनेजर संस्था है| केडीए और नगर निगम

क्या दलित चेतना में भी सुलग रहा है गाय का सवाल !

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यूँ तो ये तस्वीर ग्रामीण भारत की एक आम तस्वीर हैं लेकिन इस तस्वीर के साथ लालजी निर्मल लिखते हैं कि  जालौन के मरगांव का यह दलित युवक एक मृत बछिया को डिस्पोज करने जा रहा है ।इसे ले जाने के एवज में इसे आधा किलो अनाज मिला है ।अपने मुल्क भारत मे एक और भारत बसता है दलित भारत|  इसमें, डिस्पोज करना, पारिश्रमिक या सामुदायिक चित्ति में गड़बड़ी कहाँ है और ठीक क्या करना है उसका इलाज तो जैसा देश वैसा भेस की तर्ज पर हो सकेगा, लेकिन बीते दशकों और दो सौ सालों में जो तस्वीर सामने आ रही है उसमें बहुत कुछ और जोड़कर देखे जाने की जरुरत है, गाँव हो या देश चित्र की समग्रता और चित्ति की समग्रता दोनों के बगैर हल नहीं होने वाला| खांचे बना के शिक्षित-उपेक्षित का भेद करके जो तस्वीरें आज आ रही हैं,  ऐसा नहीं है कि ये तस्वीर लालजी निर्मल   निकले हैं तभी सामने आ रही हैं, इस तस्वीर की बयानी देख के बरबस ही दलित शोषण का एक फ़िल्मी चित्र  सामने आ जाता है, वर्ग विशेष के साथ विशेष संवेदना सामान्य बात है, दलित शोषित वंचित पीड़ित बता के अवाम की सहानुभूति तो हासिल हो ही जाती है|  भले ही तस्वीर के पीछे बुंदेलखंड के आर्थिक पिछड़ेप