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क्या “जल स्वराज” के नायक बन सकेंगे नगर पार्षद?

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भले ही हमारे नेता और अधिकारीगण भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार चिल्ला के अपना दामन दागदार होने से बचा लें, लेकिन जनता को साथ लिए बिना बनाये गए प्लान फेल होते रहे हैं और आगे भी फेल होने तय हैं| जनता को साथ लेकर वार्ड स्तर के विकास कार्यों में रायशुमारी करके काम हो तो जनता भी उसमे योगदान करने में पीछे नहीं रहने वाली| लेकिन योजनाकारी में जनता को हिस्सेदारी मिले तो साहेब लोगों के निजी हितों को करारी चोट पड़ेगी| इसलिए कोई करना नहीं चाहता| ए2जेड का उदहारण सामने है| नेता और अधिकारी लोगों ने मिलकर शहर के कूड़े का काम तमाम करने का खाका बनाया, फैसला हुआ लखनऊ में| फैसले में  नगर स्वराज की संवैधानिक संस्था नगर निगम का कोई खास रोल नहीं, पब्लिक और पार्षद को पूछने कौन वाला| जिम्मेदारी मिली जल निगम को, जिस पर नियंत्रण राज्य सरकार का| असहाय बना नगर निगम| बदनाम हुए पार्षद|    जबकि 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम के मुताबिक राज्य सरकार के अधिकारों में, प्लानिंग में सीधी हिस्सेदारी होनी चाहिए नगर निगम की, पार्षद लोगों की और वार्ड स्तर पर जनता की| लेकिन जनता के हिस्से में आयी बीस रुपये महीने की देनदारी| जाहिर