पानी का पारंपरिक ज्ञान और पानीदारों की जुमलेबाजी!

पानी तो जमीन की जान है, उसके बारे में सरकारी हीला हवाली में गाँव-गाँव और शहर-शहर बदहाली का आलम है, कर्जा लेकर घी पीने का दौर चल रहा है| अब जमीन और पानी के साथ साथ हवा में भी जहर घोला जा रहा है| ऐसा लगता है कि हम लोग सिर्फ सरकारी कवायदों के उम्मीदवार बन के रह गए हैं| आज से कुछ साल पहले पानी के गहराते संकट का एक शिकार गया शहर भी था| वहां पर भूगर्भ जल स्तर गिरने और नदियों की बदहाली का संकट कानपुर से कम तो नहीं था| लेकिन Ravindrakumar Pathak जी ने वहां एक नजीर पेश की| उन्होंने शासन-प्रशासन, सरकार और अवाम को साथ लेकर कम से कम दो दर्जन तालाबों को जीवनदान दिया| लगभग पूरे गया शहर में पानी की व्यवस्था में उनकी पहल देश में अद्वितीय उदहारण है| उन्होंने जल प्रबंधन के पारंपरिक ज्ञान से अवाम को भरपूर पानी की सौगात दी| कानपुर में एकदम साफ़ है कि पानी की कहानी महज जुमलेबाजी बन के रह गयी है| कभी किसी ने कह दिया तो कभी किसी ने लिख दिया, इतने भर से तो कुछ हासिल होने वाला नहीं| स्थानीय समुदायों में जल प्रबंधन का पारंपरिक ज्ञान लुप्त हो रहा है और जो बचा भी है वो सरकारों के लिए किसी काम का नहीं... सरकारी योजनाएं आ रही हैं लेकिन उनके बारे में किसी को पता नहीं| Adarsh Bajpai जी अवाम में तो हम और आप भी शामिल हैं, अपने ही शहर के कुएं तालाबों और जल संसाधनों की बदहाली का नजारा आम बात है| अपन लोग क्या कर पा रहे हैं| "सरकारों से क्या पाएंगे" महज इतना कह देने से तो काम नहीं चलने वाला| पाएंगे तो तब जब अवाम की ताकत पर भरोसा करेंगे या फिर सरकार से उनकी कारगुजारी का हिसाब ले सकेंगे| अगर ऐसा नहीं कर पाते हैं तो ये सब कहा-सुनी, लिखा-पढ़ी तो देश के बौद्धिक बेसुरेपन का एक बढ़िया उदहारण भर साबित होगा| जिसमे अवाम को तो पता ही नहीं कि कुछ पानीदार लोग उनकी फिक्र भी करते हैं| ये तो रही अवाम की बात, पानी के लिए यही समझ लेना काफी होगा कि जल संसाधनों को हमेशा जनता ने संभाला है| सफाई के नाम पर चल रही बीओडी, सीओडी की कवायद हो या पेयजल के नाम पर टीडीएस का ज्ञान विज्ञानं कितने लोगों को पता है? ये तकनीकी समझदारी सिर्फ सचिन और हेमामालिनी की शोहरत से अवाम के गले उतारी जाती है|आज जनता ही दरकिनार है| पण्डे, पुरोहित, नाविक, माली, मल्लाहों, मछुआरों की जो आबादी घाटों के इर्द गिर्द रहती है वी आबादी किसी किसी योजना में शामिल नहीं, उन समुदायों के नेताओं को किसी योजना में आमंत्रित नहीं किया जाता| नाविक समुदाय को सिर्फ खाली करने की नोटिस थमाई जा रही है, घाटों को खाली करने की| ये सब काम बेइरादा तो नहीं हो रहे| इसमें भी जानकार और बौद्धिक वर्ग, स्वामी सेवक समुदायों का अपना बेसुरापन है| स्वामी Anand Swaroop जितना समर्पित हो कर कानपुर में आगे बढे थे, उन्होंने जमीन पर उतर कर अवाम का दुःख दर्द समझा था| लोगों में बेहतरी की आशाएं भी जगी थीं, लेकिन इन सब कवायदों में निरंतरता साबित हो तब बात बने| Vijay Pandey जी ने यह बात उठायी है वो बधाई के पात्र हैं| हम लोग खुद इसके विषय में संजीदा हो जाएँ तो बहुत कुछ संभव होने लगेगा| जरुरत तो पानी और जवानी को साथ 

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