"आप" का घोषणापत्र और हमारा शहर

यूपी नगर निकाय चुनावों का मौसम फिर से आ गया है| चुनाव लोकतंत्र के त्यौहार है जिसमे सारे दल बल और दल बदलू अपनी अपनी दावेदारी और घोषणायें करते हैं, आम आदमी पार्टी की ओर से अपना घोषणा पत्र जारी किया गया है। आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र में भी जनता से ढेर सारे वादे किये गए हैं, मोहल्ला क्लीनिक से लेकर भ्र्ष्टाचार ख़त्म करने के वादों का पुलिंदा पार्टी के प्रदेश प्रभारी संजय सिंह और राष्ट्रीय प्रवक्ता आशुतोष ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पेश किया|  अवाम को फर्क बता कर व्यवस्था परिवर्तन और भ्रष्टाचार के वादे पर बनी सरकार का दिल्ली में जो प्रदर्शन रहा उसे दूसरे प्रदेशों के विधानसभा चुनावों में कितना पसंद किया गया, नतीजे सबके सामने हैं| जो हुआ वो तमाम चिन्तक विश्लेषको के हवाले है, बहुत कुछ और सामने आएगा| लेकिन उत्तर प्रदेश संजय सिंह का गृह प्रदेश है, दावेदारी के मामले में भी और परंपरागत राजनीति के मामले में उत्तर प्रदेश में संजय सिंह के पास खोने के लिए बहुत कुछ है| इसीलिए पार्टी कार्यकर्ताओं की बेरुखी भले ही जाहिर न लेकिन सूत्रों की मानें तो संजय सिंह से आज भी कहा जा रहा है कि जो वादा किया है, निभाना पड़ेगा घोषणापत्र के हवाले से एक नजर डालते हैं कि संजय सिंह के पास खोने को क्या-क्या है, और शहर को इस घोषणापत्र से क्या हासिल होगा|



मोहल्ला क्लिनिक 
पार्टी के घोषणापत्र में दिल्ली की तर्ज पर मोहल्ला क्लिनिक खोलने की बात सबसे प्रमुखता से रखी गयी है, सामान्य जांचों और निशुल्क दवाओं की उपलब्धता के भी दावे किये जा रहे है, हालाँकि चिकित्सा और चिकित्सा सेवाओं में आम आदमी पार्टी का तरीका अंग्रेजी दवाखाना और अंग्रेजी अस्पताल से मिलता जुलता ही है, हालाँकि मोहल्ला क्लिनिक में आम आदमी पार्टी ने चिकित्सा सुविधाओं की स्थानीय उपलब्धता के दावे किये जरुर हैं लेकिन आम आदमी पार्टी के इलाज इलाज में स्थानीयता का फलसफा कहीं जमीन से उगता दिखाई नहीं देता| इसमें “यद्देश्म तद भेषजंम” यानि जैसा “देश वैसी दवाई” चाहने वालों को निराशा हाथ लगेगी| मोदी के विकास की और दुनिया की रफ़्तार से भागने वाला गीयर लगाने में लगे पार्टी नेताओं के लिए योग, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा बहुत दूर की कौड़ी है| हालाँकि इन देसी विधाओं में खर्च की गुंजाइश भी न्यूनतम हो सकती है लेकिन अंग्रेजी तरीके के मोहल्ला क्लिनिक की घोषणा से जाहिर है कि इस मद में भारी व्यय भी होगा ही| खर्च का हिसाब करें या न करें सरकार को कुछ कमाऊ भी होना चाहिए, लेकिन नगर के लिए मोहल्ला क्लिनिको का खर्च तो प्रदेश सरकार से ही लेने का वादा किया जा रहा है| ये  "केजरीवाली" लकुना है, ऐसे में सवाल उठता है कि देश में पहले स्तर पर संसद, दूसरे स्तर के विधान मण्डल और तीसरे स्तर की स्थानीय निकायों यानि हमारी लोकल सरकारों में क्या कोई भी सरकार अवाम की सेहत का ख्याल करने में कारगर नहीं| इसका मतलब ये हुआ कि चाहे अस्पताल में मरीज मरें या डॉक्टर व्यवस्था यानि नगर निकाय अपनी आबादी के इलाज भर की कमाई करने में कारगर नहीं, एनआरएचएम के भारी भरकम घोटाले के बावजूद इसी नाकामयाबी का नमूना गोरखपुर में बच्चों की मौत से भी देखा गया| हालाँकि अरविन्द के मोहल्ला क्लिनिक गंभीर बीमारियों के लिए कितने कारगर हुए ये जवाब भी समय ही देगा| जांचों और दवाओं के निशुल्क होने पर भी व्यवस्थागत खर्च तो होगा ही, इसके लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाने का दावा हवाई ही नजर आता है|    
स्थानीय निकायों के अपने सैकड़ों अस्पताल हैं जिनके जीर्णोद्धार और बहाली के लिए जरुरी इच्छाशक्ति के अभाव ने चिकित्सा सुविधाओं का बेड़ा गर्क कर रखा है, पार्टी की स्थानीय उपस्थिति अगर सरकारी विभागों के संस्थागत भ्रष्टाचार पर कुछ अंकुश लगा सकी होती तो पंजाब गोवा जैसी करारी शिकस्त न होती| यह घोषणापत्र एक फार्मूले पर पूरा देश चलाने फरमान है जिसमे सरकार और सरकारों पर दबाव बनाने की राजनीति अहम् है| लेकिन अरविन्द केजरीवाली तरीके से व्यवस्था बनाने के लिए हर यूपी के शहर को दिल्ली बनना होगा, जो फिलहाल पार्टी, संगठन और अवाम तीनों के लिए दूर की कौड़ी है|

नगरीय निकायो में मोहल्ला स्वराज की स्थापना कर भ्रष्टाचार को पूरी तरह से समाप्त किया जाएगा।


नगरीय निकायों में मोहल्ला स्वराज की बात कही तो है लेकिन ये महज बात भर है, देश के संसदीय विधान में नगर निकायों और ग्राम निकायों के लिए तमाम कानूनों का खाका पहले से ही तैयार किया जा चुका है, 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत जिस व्यवस्था की रुपरेखा बनायीं गयी उसमे बिजली, पानी, सड़क, सफाई, स्कूल, पार्क, अस्पतालों तक में स्थानीय समितियों वार्ड लेवल कमेटियों की अवधारणा मौजूद है, दिक्कत ये है कि पार्षद को पता नहीं और अवाम के लिए कोई जागरूकता इत्यादि की कवायद नहीं हो रही, होना तो ये चाहिए था कि पार्टी अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से उन्ही कानूनों के लागू होने की कवायद में शामिल होती, कानपुर में रुमा का किसान आन्दोलन, कानपुर मेट्रो के चलते सीटीएस के उजड़ने बसाने की कवायद और ट्रांसगंगा सिटी में किसानों के मुआवजे और बदहाली के चलते हुए आन्दोलन गवाह हैं जिनमे आम आदमी पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपनी अपनी हैसियत भर कोशिश की लेकिन पार्टी से कोई आला कमान जनता के आन्दोलन में शरीक ही नहीं हुआ| 
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कर्नलगंज खटिकाने का वर्ष 2013 का वो आन्दोलन कैसे भूला जा सकता है जिसमे पार्टी के आलाकमान संजय सिंह स्वयं शामिल होकर अपना कद और पद दोनों कमाए थे| लेकिन क्या संजय सिंह जानते हैं कि उस लड़की और उसके परिवार का क्या हुआ? क्या बच्चियों पर होने वाले अत्याचारों के लिए पार्टी के आलाकमान ने कोई पहल की? स्वराज की उनकी अवधारणा में अगर आन्दोलन की बुनियाद से है तो आन्दोलन छोड़ के भागे संजय और "आप" के किरदारों को तो कतई नंबर नहीं मिलने चाहिए| ऐसे में दिल्ली की तर्ज पर बनने वाले स्वराज के दावे कितने कारगर होंगे इसका जवाब साफ़ नहीं|  

हाउस टैक्स को आधा किया जाएगा। 31, अक्टूबर 2017 के पहले के हाउस टैक्स के समस्त बकाया को माफ किया जाएगा।
हाउस टैक्स बुनियादी आय की इकाईयों में से एक है जिसके माध्यम से नगर निगम की आय होती है| यह आय इसलिए भी जरुरी है क्योंकि नगर निगमों/ निकायों के अपने विधान लागू किये जा सकें| अगर ये आय नहीं होती है तो खर्च के लिए आय के दूसरे साधन बनाने होंगे| दूसरे साधनों में दबाव की राजनीति प्रमुख है| ऐसे में स्थानीय व्यवस्था ऐसी फुटबॉल साबित होती है जिसमें नगर निकाय, राज्य और केंद्र खेलें| यही कोशिश दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने की जिसमे राज्य सरकार की पक्षकार रही आम आदमी पार्टी और पार्टी नेता| दिल्ली में नगर निगम के चुनावों से जाहिर है कि  करों के मामले में पार्टी की कोई सार्थक भूमिका नहीं साबित हो सकी| कराधान का मामला आवाम के लिए खासी मुश्किल भरा मामला है, इसे माफ़ करने की बजाए पारदर्शी बनाने की जरुरत है| आय के प्रमुख स्रोतों को दुरुस्त करने, साफ़ सुथरा रखने में तमाम साल कोई ऑडिट नहीं हुई| कर्ज लेकर चली योजनायें भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयीं| ऐसे में आय के स्रोत बंद करके बुनियादी भुगतानों भर का जरुरी पैसा कहाँ से लायेंगे? हाँ उधार को ही सुधार मान बैठे हों तो फिर स्वराज, कराधान और स्वशासन सब बेमानी हो जाते है|    

महिलाओं की सुरक्षा के लिए मोहल्ले में CCTV लगाए जाएंगे। इस के साथ ही अंधेरी जगहों को चिन्हित कर लाइटें लगवाई जाएंगी।
यह वादा निहायत ही बचकाना मालूम होता है, अव्वल बात तो सड़क के लिए सीसीटीवी की जरुरत क्या है, यह बड़ा विवादित विषय है, चूँकि पार्टी को विवादों से प्रेम है शायद इसी वजह से पार्टी ने इस विषय को चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया है|
 दिल्ली मेट्रो में हुए एक वाकये में एक घटना  मेट्रो ट्रेन में लगे कैमरे से कैद हुई लेकिन मेट्रो के ही किसी कर्मचारी ने उसे लीक कर दिया जिसके बाद किसी प्रेमी युगल के विडियो फुटेज को पूरी दिल्ली ने चटखारे मार के देखा, कैमरों से कानपुर को क्या हासिल होगा ये तो वक़्त बताएगा लेकिन स्कूलों की कक्षाओं में कैमरे लगा कर छात्र-शिक्षक संबंधों पर जैसा पहरेदार बिठाया है उसका हासिल क्या रहा ये भी गंभीर अध्ययन का विषय है| |अँधेरी जगहों में फिलहाल ऐसे कामों के लिए मार्ग प्रकाश कार्यालय मौजूद है, जिसने इसके लिए किसी पार्षद के माध्यम से, जनप्रतिनिधि के माध्यम से मांग भेजी है, प्रशासनिक अधिकारियों ने उसकी यथासम्भव व्यवस्था की है| मार्ग प्रकाश के विषय में लिखने का अर्थ तो यही है जैसे घोषणापत्र के लिए वाजिब और महत्वपूर्ण मुद्दे ही कम पड़ गए हों|
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आवारा पशुओं की समस्याओं से निजात दिलाने के लिए काजी हाउस को दुरुस्त किया जाएगा।
लेकिन आवारा पशुओं की समस्या महज आवारा पशुओं तक नहीं, इन पशुओं में अमूमन दुधारू गाय, सांड और कुत्ते शामिल हैं| पार्टी के वर्रिष्ठ नेता रहे शिवेन्दु मिश्र तंज कसते हैं कि जिनके लिए व्यवस्था में दी गयी सुविधाओं की बहाली करने का दावा भी चुनावी घोषणापत्र है| पार्टी के आवारा पशुओं की समस्या हमारे शहर की बड़ी समस्याओं में शुमार है यह बात इस घोषणापत्र से मालूम हुई| पार्टी के पूर्व संस्थापक सदस्य रहे रवि शुक्ला कहते हैं कि अगर पार्टी नेता गायों के मालिकान की बदहाली और शहर के अन्दर मौजूद चट्टों पर गौर कर सके होते तो चट्टों से बहने वाला गोबर और नाली नाले की समस्या भी नुमाया हो सकती थी|


नगर निगम व नगर महापालिकाओं में आवश्कता व जगह की उपलब्धता के आधार पर नए बहुमंजिला पार्किमग स्थल बनाएं जाएंगे।
कानपुर नगर में पार्किंग बनाने का काम कानपुर विकास प्राधिकरण ने अपने हाथ में ले रखा है, इस काम को करने के लिए विधायी शक्तियां नगर निगम के पास भी हैं| मजेदार बात ये है कि तमाम मामलों में विकास प्राधिकरण ने लोक निकाय के अधिकारों का हरण करके भवन भूखंडों के विकास के कार्य किये हैं| प्राधिकरण के कामों के जरिये जनता के चुने प्रतिनिधियों के हक छीन लिए गए, जिन पर कोई नेता दावा करने की स्थिति में नहीं, सदन में ऐसा कोई वाकया भी नहीं सुना गया| पार्टियों को स्थानीय स्वराज में रूचि हो तो जनता के चुने पार्षदों और लोकल की सरकार से छीनी गयी संवैधानिक शक्तियों को वापस लाने की बात उठाई जाए, लेकिन आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र से यह अपेक्षा करना बेमानी लगता है|

परिवार की जरुरत भर का पानी नि:शुल्क दिया जाएगा। इसके साथ ही 31, अक्टूबर 2017 के पहले का वाटर टैक्स माफ किया जाएया।
दिल्ली में पानी फ्री बाँटने का फार्मूला सुपरहिट रहा, कानपुर में भी एक बड़ी आबादी के पास पेयजल संकट है, लेकिन इसके लिए गंगा नदी पर निर्भरता बढती है तो गंगा के प्रवाह पर भी गौर करना जरुरी होगा| मुफ्त पानी के लिए जलस्रोतों को व्यवस्थित करने की बात किए बगैर पार्टी गंगा की बदहाली में एक नया अध्याय जोड़ेगी| कानपुर शहर में 1 पैसा, 1.2 पैसा और 1.4 पैसा प्रतिलीटर की दरें निर्धारित करके अमृत योजना लागू की जा रही है ऐसे में फ्री वाटर का क्या अर्थ होगा ये और पार्टी की घोषणा का क्या अर्थ है यह समय के साथ पता लगेगा|  हालाँकि दिल्ली में एक नियत सीमा तक की जरुरत का ही पानी मुहैया कराया गया, लेकिन बड़े जल उपभोक्ताओं पर लगे करों और उनकी दरों के नतीजे भी दीगर हैं| दिल्ली के लोगों के लिए इस फ्री वाटर से जो खास बात हुई वह थी पानी के मीटर लगवाने की| हालाँकि उपभोग का पानी नापने की जरुरत तो है लेकिन अगर फ्री वाटर सिर्फ आदमियों के लिए होगा तो जानवरों और पेड़-पौधों के लिए पानी का प्रयोग किस दर से तय किया जायेगा, ये एक अहम् सवाल है| कानपुर नगर निगम के आठ सौ पार्कों की सिंचाई में तो नगर निगम का दीवाला पानी की कीमत से ही बैठ जायेगा| 

जगह-जगह पर संबंधित नगरीय निकाय द्वारा वाटर एटीएम लगाएंगे व उन्हीं वाटर एटीएम से गर्मियों में न्यूनतम दर पर ठंडा पानी उपलब्ध कराएंगे।
वैश्वीकरण के युग में यह पानी का बाज़ार बनाने का दौर है| पानी का पाउच हमारे शहर की बुनियादी अर्थव्यवस्था में भले ही शामिल न हो पा रहा हो लेकिन पानी की बोतल बड़े रसूखदार लोगों की मेज से उतरकर संतराम पंसारी की दुकान तक पहुँच गयी| उसी तरह का पानी सारी अवाम के लिए मुहैया हो यह एक बेजा मांग है जिसे राजनीतिक तबकों द्वारा उठाया जाता रहा है| ऐसी अवस्था में पेयजल के लिए मौजूद शोधन संयंत्रों और पेयजल के नलों और पाइपलाइन का क्या औचित्य बचेगा ये सवाल नीति नियंताओं के माथे पर बल डालने के लिए काफी है| एक तरफ पेयजल शोधन के भारी-भरकम निवेश सामने नजर हैं जिनकी देनदारी बढती जा रही है, उन संयंत्रों से भी स्वच्छ पेयजल के ही दावे किये गए हैं| दूसरी तरफ वाटर एटीएम सरीखी व्यवस्थाओं का उदय और पानी पहुँचाने की पोर्टेबल तकनीक को व्यवस्था में बुनियादी जरुरत करार देना कहाँ तक सार्थक होगा यह तो वक़्त बताएगा|  
-नगर निगम, नगर निकाय के अंतर्गत आने वाले सभी बाजारों, बस स्टॉप व व्यस्त चौराहों पर महिलाओं के लिए अधुनिक शौचालयों का निर्माण करवाया जाएंगा।
महिला शौचालयों की जरुरत जरुर एक बुनियादी जरुरत है| घरेलु और कामकाजी महिलाओं के साथ पब्लिक टॉयलेट प्रयोग करने में बड़ी दिक्कत सफाई की होती है| शौचालय बनवाने के बाद उनकी दुर्गति भी दीगर है, मौजूदा शौचालयों की सुविधाओं को बेहतर करके महिलाओं के उपयोग के लायक बनाने का काम जरुर काबिलेगौर है| लेकिन ठेकेदारी और कमीशनखोरी के इस युग में तो योजना भी अमूमन ठेकदार ही बताते हैं| फिर भी पार्टी की ये पहल प्रसंशनीय है|   

नगर निगम व नगर निकाय के अंतर्गत आने वाले सभी पार्किंग स्थलों का शुल्क आधा किया जाएगा।
पार्किग स्थलों का शुल्क नहीं, पार्किंग शुल्क की पारदर्शिता ज्यादा जरुरी बात है, क्योंकि तमाम ठेकेदार मनमानी दरें वसूलते हैं| इस दिशा में भी कुछ ठोस प्रयास करने की आशा करते हैं|

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लोगों को कूड़ा उठाने के लिए अपनी जेब से पैसा नहीं देना होगा। शहर की सफाई व्यवस्था दुरुस्त की जाएगी।
सवाल है कि कूड़ा उठाने पर पब्लिक से पैसा नहीं लिया जायेगा तो फिर पैसा आएगा कहाँ से? कूड़े की समस्या के निदान के लिए गतवर्ष बने कानूनों के विपरीत बयानबाजी भर से या घोषणापत्र में लिख देने भर से काम नहीं चलने वाला| कूड़े की समस्या उठान, निस्तारण और पृथक्करण तीनों स्तर पर है| पैसा लेकर या पैसा देकर कूड़ा सफाई आम बात है, इस दिशा में विचारने के लिए गौरतलब है कि स्वच्छ भारत मिशन की परियोजना विश्वबैंक द्वारा वित्तपोषित है| कूड़ा हम फैलाएं, और साहेब लोग कर्जा लेकर उसको ठिकाने लगायें इस सिलसिले से तो नगर निगम की देनदारियां ही बढेंगी| इन देनदारियों का सीधा असर नागरिक सुविधाओं की दरों में बढ़ने से देखा जा सकता है| शहर में नागरिक सुविधाओं के हिसाब से कास्ट ऑफ़ लिविंग बढती है तो उसके लिए आय और आय के स्रोतों की रोजगार की क्या व्यवस्था हो सकेगी? इन सवालों को दरकिनार करके बनी नीतियां लच्छेदार बयान या आकर्षक नारेबाजी भर साबित होंगी|    

-शहरों में जगह-जगह कूड़ेदान रखे जाएंगे। उनको उठाने के लिए नियमित व्यवस्था की जाएगी।
कूड़े के लिए भरे बाजारों के रात के समय सफाई का काम हाल ही में शुरू किया गया है| कूड़ेदान और उनकी उठान का मामला नीतिगत से ज्यादा प्रशासनिक इच्छाशक्ति का विषय है| प्रशासनिक अधिकारी राज्य के अधीन हैं, उनकी प्राथमिकताएं नगर व्यवस्था के साथ कदमताल करके चलती हैं तो ठीक है, दिल्ली जैसी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता से शहर और कूड़े के क्या नज़ारे दिखेंगे ये भी चिंता का विषय है| 


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सफाईकर्मियों को नियमित किया जाएगा। समय पर वेतन दिया जाएगा।
सफाई कर्मियों के नियमित करने की घोषणा प्रसंशनीय है| इस दिशा में बहुत संजीदगी से काम करने की जरुरत है| लेकिन इसी के साथ नगर निगम के सफाई कर्मियों के बीच पलने वाले सूदखोरों के आतंक और नियमित सफाई कर्मियों की बदहाली भी गौर करने का विषय है| हालाँकि सफाई मजदूर और मजदूर यूनियनों का अवसानकाल है, लेकिन हम आशा करते हैं कि इस दिशा में भी कुछ प्रभावी कदम उठाये जा सकेंगे|  
-जन सुविधा हेतु नगरीय निकाय व्यवस्था के द्वारा एंबुलेंस भेजी जाएगी।
जन सुविधाओं के लिए नगर निकायों की तरफ से एम्बुलेंस भेजने का कदम सराहनीय कार्य है| समाजवादी एम्बुलेंस सेवा से लोगों को बहुत सहूलियत हुई, यह सेवा भी सराही जा सकती है| लेकिन जरुरत है पूरी तस्वीर एक साथ देखने की नगर निकायों के अपने सैकड़ों अस्पताल खुद बीमार हैं, उन खस्ताहाल अस्पतालों के जीर्णोद्धार को भी लक्ष्य बनाकर काम किये जाने की जरुरत है|
 
-नगरीय निकाय द्वारा संचालित स्कूलों को आत्याधुनिक बनाया जाएगा।
नगरीय निकायों के स्कूलों की बदहाली शहर की दुर्दशा में एक नया अध्याय है, शहरों के निकम्मे निकायों की प्रशासनिक असफलता के चलते लगभग एक हजार स्कूल बर्बाद हो गए| इन स्कूलों की व्यवस्था में शिद्दत के काम किये जाने की जरुरत अरसे से महसूस की जा रही थी| स्कूलों की दुर्दशा सुधारने में महज भूमि भवन और वित्तीय लेखे जोखे भर से काम नहीं चलने वाला|  पार्टी की इस पहल में अगर भूमि भवन हार्डवेयर है तो शिक्षा नीतियां और शिक्षण प्रशिक्षण सॉफ्टवेर| स्कूलों के मामले में हार्डवेयर और सॉफ्टवेर दोनों ही विषय अहम् है| दोनों विषय शिद्दत से उठाये जाने की जरुरत है|   


-नगर निकायों में रोजगार की व्यवस्था 
नगरीय निकायों के अपने संसाधनों से शहरी आबादी से रोजगार तलाशने के प्रयास भी सराहनीय हैं, लेकिन इनमे अधिकतर दृष्टाओं की रूचि इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और उससे मिले अल्पकालिक रोजगार तक होती है| चिरकार्लिक रोजगार के बगैर टिकाऊ विकास की सारी कवायदें कामयाब नहीं मानी जा सकतीं| इसलिए आबादी के लिए रोजगारपरक शिक्षा की सोच में शहर की बनावट का ख्याल करने की जरुरत है| कानपुर शहर में सूती मिलों के जरिये उपजी औद्योगिक क्रांति और टेनरी उद्योग शहर के साथ एक ज्यादती जैसी घटनाएँ थी| शहर में जिन कामों को ब्रिटिश हुक्मरानों की गलतियाँ कहा जाना चाहिए था, उस मिल और फैक्टरी वाले इतिहास को विकास के सोपान में जोड़ दिया गया| 

-बस्तियों का नियमितीकरण
ऐसे भी तमाम लोग हैं जो छप्पन अपनी छाती छप्पन इंच करके कानपुर को मेनचेस्टर ऑफ़ ईस्ट कहते हैं| लेकिन इस औद्योगिक क्रांति की देन मिली अट्ठारह हजार मजदूर बस्तियां| मजदूर बस्तियों को नियमित करने की जरुरत समय की मांग है| इसी क्रम में इस बात की भी जरुरत है कि शहर का आर्थिक सर्वेक्षण करके प्रदेश के अग्रणी नगर को उसके हक का दर्जा दिया जाए| हालाँकि नियमित करने की मांग और कवायद लम्बे समय से जारी है लेकिन असली बात तो ये है कि इसके लिए नेता की मजबूत इच्छाशक्ति की दरकार है| अगर ऐसा होता है तो नगर निगम की अवैध कॉलोनियों को नियमित करने की घोषणा का स्वागत किया जायेगा|

-कब्जे की संपत्तियां 
 नगर निगम की जिन तमाम सम्पतियों पर अबैध कब्जा है, उन्हें हटाकर आय के साधन पैदा किए जाएंगे| ये वादा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट  से सीधा जुड़ा है, इस लिहाज से देखा जाए तो विकास के लिए नगर महायोजना और शहर की जरूरतें भी खासी अहमियत रखती हैं, लेकिन चुनावी घोषणापत्र में इकलौती यही कमाऊ घोषणा है, इसको भी दरकिनार कर दिया जाये तो हमारी लोकल सरकार कमाई का जरिया नजर नहीं आता| देखना ये होगा कि जमीनें खाली करा के कौन से नए मुकाम बनते हैं|

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