तीन टन प्लास्टिक लेकर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं गंगा और ब्रह्मपुत्र

एक अध्ययन में बात सामने आई है कि 90 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा समुद्रों में पहुँचाने का काम नदियाँ कर रही हैं| शहरों में कूड़े खास कर प्लास्टिक की वाजिब व्यवस्था न होने के चलते नदियाँ पहले से ही प्रदूषित थीं अब उनका प्रदूषण समुद्रों के लिए भी चुनौती बन रहा है| दुनिया भर के आंकड़ों को इकठ्ठा करके जर्मन वैज्ञानिकों ने जो अध्ययन किया है उसक]में एशिया और अफ्रीका के नतीजे ज्यादा चिंताजनक बताये गए हैं| बताया जा रहा है कि चार लाख टन से चालीस लाख टन के बीच प्लास्टिक कचरा हर साल समुद्र में पहुँचता है| इस कचरे का नब्बे प्रतिशत प्रतिशत हिस्सा एशिया की आठ और अफ्रीका की दो नदियों से होकर समुद्र में पहुंचता है| इस अध्ययन में ऐसे संकेत भी मिले हैं कि चीन की येल्लो रिवर के कैचमेंट एरिया में प्लास्टिक कचरे के निस्तारण की सबसे भारी दुर्दशा है| येल्लो समुद्र में गिरने वाली ये नदी अपने पेट में सोलह मिलियन टन प्लास्टिक भरकर समुद्र में पहुंचाती है| उन्ही के अध्ययन में ये बात भी सामने आई है कि गंगा ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के कैचमेंट से तीन मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र में पहुँचती है| ये तीनों नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं| छः साल पहले केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया था कि देश के साठ शहरों से 1.28 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा निकलता है| जर्मन वैज्ञानिकों ने नदियों के किनारे बड़ी आबादी को इस कचरे की बड़ी वजह बताया है| साथ ही वैज्ञानिकों ने इस समस्या के निदान के लिए कचरा प्रबंधन और जनजागरूकता की जरुरत को भी रेखांकित किया है|
इसी तरह के एक अनुसन्धान में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने चीन, इण्डोनेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और श्रीलंका के प्लास्टिक के कचरे के विषय में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी| गौरतलब है कि उक्त रिपोर्ट में हिन्दुस्तानी नदियों और कचरे का चीन, इण्डोनेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और श्रीलंका के बाद बारहवाँ स्थान आँका गया था| जर्मन वैज्ञानिक मानते हैं कि नदियाँ प्लास्टिक कचरे का अनुमानित तौर पर तीस प्रतिशत हिस्सा लेकर बहती हैं|

स्रोत: टेलीग्राफ 

Comments

Popular posts from this blog

गंगा की व्यथा-कथा: नदिया के डॉक्टरों ने लगाई सरसैया घाट पर पंचायत

"आप" का घोषणापत्र और हमारा शहर

पानी का पारंपरिक ज्ञान और पानीदारों की जुमलेबाजी!