किसके भरोसे स्मार्ट सिटी बनेगा कानपुर?

सच बात तो ये है कि गाँव की परिधि और परिभाषा तय नहीं है यही स्थिति शहर के लिए भी है| जाहिर है कि अगर कोई सवाल करे कि गाँव क्या है या शहर किसे कहते हैं तो शहरी या ग्रामीण विकास के झंडाबरदार साहेब लोग बगले झांकते मिलेंगे| गाँव में भूगोल लेखपाल यानि पटवारी जी के हाथ में होता है तो शहर में अधिकारी जी के हाथ में| अलबत्ता गाँव हो या शहर कानून और नागरिक कर्तव्यों की लाठी सिपाही जी के जिम्मे | पटवारी जी हों अधिकारीजी हों या सिपाही जी अगर ईमानदार हुए तो मुअत्तली का परवाना साथ साथ चलता है| कई बार तो जगह को समझने और लोगों की तकलीफों से रूबरू होने के पहले ही अगले पड़ाव का आदेश मिल जाता है| ऐसे में जमीन से जुड़ने का मौका कहाँ मयस्सर होगा| अब अगर गाँव या शहर में कुछ ही दिन या महीने रहना-रुकना है तो खाने-कमाने के अलावा और क्या करेंगे|   इसी के चलते गाँव अपनी दुर्दशा से बेहाल हैं तो शहरी विकास भी विरोधाभास का शिकार है|

स्मार्ट सिटी मिशन के नाम से चल रही योजना में सरकारी दस्तावेज इसी विरोधाभास के पर्याय नजर आते हैं|
एक तरफ कहते हैं कि शहर भारत समेत दुनिया के सभी देशों के आर्थिक विकास के इंजन हैं तो दूसरी तरफ जिक्र मिलता है कि "देयर इज नो वे ऑफ़ डिफाइनिंग ए स्मार्ट सिटी" मतलब कि कोई तरीका नहीं है जिससे स्मार्ट सिटी को परिभाषित किया जा सके|

इसके बावजूद स्मार्ट सिटी के भूत से नागरिक जीवन और क्षेत्र का भूगोल  प्रभावित होना तय है| स्मार्ट सिटी की तितली कितने बाग़ उजाड़ेगी बताना मुश्किल है| भविष्य तो समय के गर्भ में पलता है लेकिन पहले की योजनाओं के अनुभव और उनका वर्तमान स्मार्ट सिटी से जिंदगी में बेहतरी के दावे का मतलब समझने के लिए काफी हैं|
पहला दावा है पर्याप्त जल उपलब्धता का :
कानपुर नगर में तो पानी और गंगा सफाई का जिक्र साथ ही साथ होता है| मुख्य जल स्रोत पांडू नदी बदहाल है, मृतप्राय हो चुकी है और गंगा के पानी का दसवां हिस्सा ही शहर पहुँच रहा है|  नगर विकास मंत्रालय भारत सरकार और प्रदेश सरकार की "ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत" यानि कर्जा लेकर घी पीने के लिए बनी योजनाओं की धज्जियाँ उड़ीं इस गर्मी की मीडिया रिपोर्टों में| स्मार्ट सिटी कानपुर में अमृत योजना के मार्फ़त 100 फीसदी कनेक्शन लगाने का लक्ष्य है| यानि घर में नल हो या सबमर्सिबल पानी मीटर से मिलेगा| हालिया रिपोर्टों से जाहिर भीषण पानी की किल्लत के बावजूद भी टंकियां बन के सूखी खड़ीं हैं शायद इस आस में कि पानी के कनेक्शन बढ़ें तो चालू की जाएँ|  इन सब के बावजूद सबसे बड़ा सवाल ये है कि कनेक्शन बढ़ भी गए तो पानी लायेंगे कहाँ से?

दूसरा दावा है बिजली की सुनिश्चित सप्लाई का:
कानपुर में बिजली सप्लाई के हालात सुधरे जरुर हैं लेकिन कीमतें बढ़ा कर| औद्योगिक क्षेत्रों की बिजली हो या घरेलु उपभोग की विधायिका में निजी कंपनियों की दखलंदाजी के चलते बिजली की महंगाई की दर नागरिकों के लिए महंगाई के डर जैसी हो चली हैं|

तीसरा दावा है सफाई और ठोस कचरे को ठिकाने लगाने का 
कूड़े के निस्तारण पर बड़े-बड़े दावे करने वाली कंपनी ए2जेड के शहर से फरार हो गयी| उसके बाद ए2जेड की प्रमुख फिनान्सर कंपनी आईएलऍफ़एस ने खुद जिम्मा उठाया है| नई शर्तों में प्रमुख है कि कूड़ा उठाने और पनकी प्लांट तक पहुँचाने की जिम्मेदारी नगर निगम की और उस कचरे के निस्तारण की जिम्मेदारी आईएलऍफ़एस की होगी|

देखना यह होगा कि कर्मचारियों की कमी से जूझ रही नगर निगम कूड़े को काला सोना बना के दोहन करने वाली कंपनी से कैसे रिश्ते कायम कर पाती है और ए2जेड जैसे हालात होने पर खामियाज़ा किसे भुगतना होगा|



चौथा दावा है शहर में नागरिक परिवहन की व्यवस्था दुरुस्त करने का 
नागरिक परिवहन के मामले में शहर का फिसड्डी होना पहले के तमाम दावों को खोखला साबित करता है| इसी लिहाज से सिटी मोबिलिटी प्लान पहले से प्रस्तावित है जिसे स्मार्ट सिटी में फ्लैगशिप प्रोजेक्ट के तौर पर शामिल किया जा सकता है| इसी प्रोजेक्ट के तहत रिंग रोड बनाना और जवाहर लाल अर्बन रिन्युअल मिशन की तमाम बसों को भी चलाना शुमार किया गया था| अधिक किराये के बाद बसों का खस्ताहाल हो जाना और बसों में अपेक्षित सुविधाओं की खामियां बताती हैं कि क्रियान्वयन के स्तर पर बहुत सी कसरतें करनी होंगी|

पांचवां दावा हैं गरीबों की पहुँच में होंगे आवास    
गरीबों के हित को ध्यान में रख कर चलाई जा रही योजनाओं में गरीबों की हैसियत के मुताबिक सस्ते मकान मुहैया कराने की कवायदें तमाम हुईं लेकिन शहरी बसावटों में लगभग एक तिहाई गरीब झुग्गी झोपड़ियों में ही निवास करते हैं| इस पर भी तुर्रा ये है कि गरीबों के नाम पर बने मकानों को अवसरवादी धन पशुओं ने हड़प लिया| इस दुष्चक्र के लिए क्या ठोस रणनीति बनाई जा रही है ये भी समय के साथ सामने आएगा|

सूचना प्रौद्योगिकी और दस्तावेजों का डिजिटलीकरण 
सूचना प्रौद्योगिकी सिर्फ उनके लिए जिन्हें तकनीक मयस्सर है| वंचित तबके को आईटी का लाभ कैसे मिलेगा ये फिलहाल दूर की कौड़ी मालूम होता है|

सुराज खास कर ई-गवर्नेंस और नागरिक भागीदारी
पिछली तमाम योजनाओं में नागरिक भागीदारी के मामले में नतीजे सिफ़र ही रहे हैं|  पार्षदों की भूमिका की बजाये एन.जी.ओ. संगठनों की मार्फ़त अपेक्षित सफलता की उम्मीद करना एक तरह से नगर स्वराज के संवैधानिक ढांचे को धता बताने का काम है| लेकिन विश्व बैंक द्वारा पोषित योजनाओं में निवेश और पूंजी प्राप्ति के निर्देशों में इस उपेक्षा का हासिल कुछ भी हो जन सामान्य की भागीदारी मुकम्मल होना दूर की बात है|

चिरस्थाई पर्यावरण 
सस्टेनेबल डेवलपमेंट के दावे में पर्यावरण का क्या मतलब है इसे समझने कानपुर नगर की जिला योजना संरचना  के लिए पर्यावरण पर समानुपातिक निवेश   का उदहारण लेना जरुरी है| बारहवीं पंचवर्षीय योजना में कुल आवंटित परिव्यय रहा 2172.36 करोड़| वर्ष 2016-17 यानि  अंतिम वर्ष में पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार, होर्डिंग, प्रदर्शनी, एवं स्लोगन हेतु 2.30 लाख रुपये का परिव्यय प्रस्तावित किया गया है|

नागरिक सुरक्षा खास कर महिला एवं बच्चों और बुजुर्गों की हिफाज़त के दावे 
यूँ तो शहरी आबादी में नागरिक सुरक्षा में मानवीय संवेदना का विशेष स्थान है| लेकिन आधुनिक तकनीकी द्वारा सुरक्षा मुहैया कराने के दावे की सच्चाई देखनी हो तो नागरिक परिवहन के लिए जवाहर लाल अर्बन रिनुअल मिशन द्वारा पोषित किसी बस में सफ़र करके देख लीजिये नए कैमरे के लटकते तार सारी कहानी बता देंगे कि खाने-कमाने को बनी योजनाओं में नागरिक सुरक्षा की क्या अहमियत है|

स्वास्थ्य और शिक्षा 
स्वास्थ्य विभाग में राज्य सरकार के स्तर पर किये जा रहे प्रयासों में नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के मार्फ़त हुए पूंजी निवेश से गति तो मिली लेकिन एनआरएचएम घोटाला बदनुमा दाग दे गया| उसके बाद से सरकारी मशीनरी डॉक्टर और मरीजों, शासन-प्रशासन के समन्वय में उलझी रही| आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सालय इच्छा शक्ति की कमी के चलते कागजों के बाहर निकले भी तो जमीन पर उग न सके| स्मार्ट सिटी की सेहत कैसे सुधरेगी इस सवाल का जवाब  भी कमजोर नसों में ताकत भरने वाले हकीमों के दावों की तरह ही मिलता है|
शिक्षा के मामले में नगर निगम और बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा संचालित विद्यालयों की हालात किसी से छुपी नहीं है| जिला विद्यालय निरीक्षक के मातहत चल रहे माध्यमिक विद्यालयों  की हालात भी कमोबेश एक जैसी ही है| सरकारी स्तर पर किये गए इतने बड़े प्रयास भी संभव है कि लाभार्थी निवेशकों की दरियादिली से सजें लेकिन इसका हासिल भी समय ही बताएगा| अलबत्ता कुकुरमुत्तों की तर्ज पर उगे निजी विद्यालयों की पौ बारह है| जानकारों का मानना है कि स्मार्ट सिटी के दावे निजी विद्यालयों और निजी निवेशकों के भरोसे तो कतई नहीं होंगे|  
  
शहरी परिवेश और नागरिक जीवन स्तर के सुधार के लिए जरुरी संस्थानिक, भौतिक, सामाजिक और आर्थिक स्तंभों के मानक क्या होंगे ये तो शहरी रियाया और स्थानीय नेतृत्व तय करे तो बेहतर होगा| ग्रामीण जीवन की बेहतरी के लिए 73वां संविधान संशोधन विधेयक  और शहरी रियाया के लिए 74वां संविधान संशोधन विधेयक भारतीय संसद में इसी मकसद के लिए पारित  किया गया| फिलहाल नागरिक जनभावना का सबब बने इन कानूनों की निवेशकों के हितों के सामने क्या हालात होगी इस सवाल का जवाब समय के गर्भ में है|  

लेकिन यक्ष प्रश्न तो ये है कि कानपुर शहर में ये सब किसके जिम्मे है,
तो आपको बताते चलें कि  नगर विकास मंत्रालय की स्मार्ट सिटी योजना का दायित्व नगर निगम में पर्यावरण इंजीनियर के नेतृत्व में बने प्रोजेक्ट सेल के जिम्मे है, और कूड़े का काम किसके हाथ में है इसको लेकर मतभेद बरक़रार है|
प्रोजेक्ट सेल में तकनीकी विशेषज्ञों के हाथ कौन सा जादुई चिराग है इसकी तो खबर नहीं लेकिन दफ्तरियों की कसरत-कवायदों में क्या-क्या कर्मकाण्ड शामिल हैं ये जानने के लिए जरा इस तस्वीर को गौर से देखिये|

  
   

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