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कानपुर के पानीदार लोगों से अपील

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वर्षा जल संचयन और जल प्रदायों (बरसाती नाले, नहरों, कुएं और तालाब) के लिए सहयोग करें जल ही जीवन है और शहर का जल संकट भयावह रूप लेता जा रहा है| कानपुर शहर के वर्तमान जल संकट के लिए प्रशासनिक स्तर पर तमाम प्रयास किये जा रहे हैं| इस सन्दर्भ में माननीय जिलाधिकारी महोदय ने कुओं के जीर्णोद्धार के लिए भी अपील जारी की है जिसका सुधी नागरिकों और उद्योगों द्वारा उत्साहपूर्वक स्वागत और समर्थन किया जा रहा है| आपकी एसोशियेशन से जुड़े मेम्बरान के लिए एक खुशखबरी यह भी है कि जिलाधिकारी महोदय की इस पहल में कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी के द्वारा भी आप वर्षा जल संचयन और जल प्रदायों (बरसाती नाले, नहरों, कुएं और तालाबों) को बचाने और बेहतर बनाने में सहयोग कर सकते हैं| आपका यह कदम निश्चय ही आपके द्वारा शहर को दी गयी सौगात साबित हो सकता है| इस नेकनामी से आपके उद्योग को चार चाँद लगेंगे| इसी ख्वाहिश के साथ हम आपके साथ “पानीदार कानपुर” के सपने को साझा करना चाहेंगे| गंगा एलायंस ने जल संकट की इस विकट घडी में भूगर्भ जल के गिरते स्तर को सुधारने के लिए कुछ पहल भी की है| इसमें नागरिकों और उद्योगों को रेन वाट

किसके भरोसे स्मार्ट सिटी बनेगा कानपुर?

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सच बात तो ये है कि गाँव की परिधि और परिभाषा तय नहीं है यही स्थिति शहर के लिए भी है| जाहिर है कि अगर कोई सवाल करे कि गाँव क्या है या शहर किसे कहते हैं तो शहरी या ग्रामीण विकास के झंडाबरदार साहेब लोग बगले झांकते मिलेंगे| गाँव में भूगोल लेखपाल यानि पटवारी जी के हाथ में होता है तो शहर में अधिकारी जी के हाथ में| अलबत्ता गाँव हो या शहर कानून और नागरिक कर्तव्यों की लाठी सिपाही जी के जिम्मे | पटवारी जी हों अधिकारीजी हों या सिपाही जी अगर ईमानदार हुए तो मुअत्तली का परवाना साथ साथ चलता है| कई बार तो जगह को समझने और लोगों की तकलीफों से रूबरू होने के पहले ही अगले पड़ाव का आदेश मिल जाता है| ऐसे में जमीन से जुड़ने का मौका कहाँ मयस्सर होगा| अब अगर गाँव या शहर में कुछ ही दिन या महीने रहना-रुकना है तो खाने-कमाने के अलावा और क्या करेंगे|   इसी के चलते गाँव अपनी दुर्दशा से बेहाल हैं तो शहरी विकास भी विरोधाभास का शिकार है| स्मार्ट सिटी मिशन के नाम से चल रही योजना में सरकारी दस्तावेज इसी विरोधाभास के पर्याय नजर आते हैं| एक तरफ कहते हैं कि शहर भारत समेत दुनिया के सभी देशों के आर्थिक विकास के इंजन हैं तो

गंगा की व्यथा-कथा: नदिया के डॉक्टरों ने लगाई सरसैया घाट पर पंचायत

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कानपुर|   नदिया के लिए डाक्टरी की जरुरत पड़ी है| खबर है कि शहर के विद्वानों ने मुहिम छेड़ी है कि नदी स्वास्थ्य सूचकांक कैसे बने| सरसैया घाट के किनारे लगी पंचायत के लिए सवाल थे कि नदी के स्वास्थ्य का परिक्षण कैसे हो? कैसे कहा जाए कि किसी नदी की हालत नाजुक है या बेहतर| कैसे बयान किया जाए कि अमुक नदी की सेहत का राज क्या है? ये सवाल शहर के लोगों को भले ही नागवार लगते हों| लेकिन इन्हीं सवालों के जवाब में डब्लूडब्लूऍफ़ के राजेश बाजपेई ने नदी स्वास्थ्य सूचकांक की परिकल्पना रखी| साथ ही बताया कि ग्लोबल एनजीओ विश्व वन्यजीव फण्ड के नेतृत्व में गंगा और दुनिया भर की नदियों के लिए नदी स्वास्थ्य सूचकांक बनाने की कवायद शुरू हुई है| विशेषज्ञ के तौर राजेश नदी स्वास्थ्य के मानकों में जरुरी बताते हैं, नदी में पानी की मात्रा को, नदी की धारा के बहाव को, रासायनिक प्रदूषकों की मात्रा को यहाँ तक नदी के किनारे रहने वाले लोगों की सोच और उनके नदी के साथ जुड़ाव को| इन सबके साथ ही साथ हरियाली और जैवविविधता भी नदी के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही जरुरी मानते है| कार्यक्रम में पूर्व पार्षद मदन लाल भाटिया, आईआईटी के प्रो. रा