जल-संसाधनों से खिलवाड़ या पानी के बाजारीकरण की मनमानी??


राजस्थान के कई शहरों में लोगों को 24 घंटे पानी देने की तैयारी की जा रही है. मगर कहने में अच्छी लगने वाली यह योजना कार्यान्वयन के स्तर पर खामियों से भरी है. नीतिगत धांधलियों के चलते पानी के बाजारीकरण को ही समाधान मान लेना जवाबदेही से बचने का रास्ता अख्तियार करने जैसा है.


साभार: तहलका हिंदी

खबर 24X7. बैंकिंग 24X7. पिज्जा 24X7. और अब इसी तर्ज पर राजस्थान के कई शहरों में 24 घंटे और सातों दिन पानी पिलाने का दावा किया जा रहा है. यह दावा राज्य सरकार के उस जलदाय विभाग का है जो आज तक लोगों को 24 घंटे में से बामुश्किल दो घंटे भी पानी नहीं पिला पाया. विभाग की मानें तो उसने पीपीपी यानी जन-निजी साझेदारी के जरिए 24 घंटे पानी पिलाने के लिए कमर कस ली है.
मगर तहलका की पड़ताल बताती है कि विभाग ने अपनी कमर जनता का पानी कंपनियों के हाथ सौंपने के लिए कसी है. असल में राजस्थान की मरु धरा पर धाराप्रवाह पानी पिलाने की तस्वीर दिखाना कुछ और नहीं बल्कि 24 घंटे पानी पर मनमानी का रास्ता साफ करने की एक कवायद है.  उन कंपनियों के लिए जिन्हें इसका ठेका मिलेगा.
देश के भीतर 24 घंटे जलापूर्ति के सपने गिने-चुने शहरों में ही दिखाए गए हैं. मगर मध्य प्रदेश के खंडवा,  महाराष्ट्र के पिंपरी-चिंचवड़ (पुणे) और अहमदाबाद जैसे शहरों के हालिया तजुर्बे बताते हैं कि निजी कंपनियों के उतरते ही 24 घंटे जलापूर्ति से जुड़े सपने पिछले दरवाजे से हवा कर दिए जाते हैं. खंडवा में 24 घंटे पानी के सब्जबाग दिखाए गए थे. मगर जब योजना अनुबंध पर हस्ताक्षर हुए तो पता चला कि ठेकेदार कंपनी विश्वा इन्फ्रास्ट्रक्चर्स को सेवा शुरू करने से पहले ही जलापूर्ति 24 घंटे से घटाकर छह घंटे करने की छूट दे दी गई है. पिंपरी-चिंचवड़ में भी जलापूर्ति का समय छह घंटे ही रखा गया है. खंडवा, पिंपरी-चिंचवड़ के अलावा अहमदाबाद में भी कंपनियों द्वारा 24 घंटे जलापूर्ति को अत्यंत खर्चीली बताकर खारिज किया जा चुका है.  जलापूर्ति की इस योजना का एक दुखद पहलू यह है कि इससे जुड़ी कंपनियों द्वारा अगर छह घंटे भी पानी नहीं दिया जाता तो भी उनके खिलाफ सेवा में कमी का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता. वजह यह है कि योजना अनुबंधों में कहीं भी कंपनियों को उनकी जलापूर्ति की जवाबदेही से नहीं जोड़ा गया है.
सूत्रों का कहना है कि किसी भी जगह 24 घंटे जलापूर्ति तभी साकार होती है जब पानी की दरें बढ़ाई जाएं. जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) के मुख्य अभियंता (विशेष योजना) रुपाराम कहते हैं, ‘विभाग को जयपुर शहर में जलापूर्ति के लिए प्रति एक हजार लीटर पर 25 रुपये खर्च करना पड़ता है. ऐसे में 24 घंटे पानी पहुंचाया गया तो खर्च कई गुना बढ़ जाएगा. इसे भरने के लिए बिलों में बढ़ोतरी से इनकार नहीं किया जा सकता.’ जयपुर में फिलहाल एक हजार लीटर पानी के लिए शुल्क 1.25 रुपये है. जानकारों के मुताबिक अगर सरकार निजी कंपनी के मार्फत 24 घंटे पानी पहुंचाती भी है तो उपभोक्ताओं के लिए पानी का बिल कई गुना बढ़ जाएगा. उधर, राजस्थान के पीएचईडी मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह कहते हैं, ‘24 घंटे पानी पहुंचाने का यह मतलब थोड़े है कि सरकार दरें बढ़ाएगी ही. पहले हम काम करके दिखाएंगे और उसके बाद दरों की बात करेंगे.’ सिंह यह भी दावा करते हैं कि 24 घंटे जलापूर्ति सिर्फ सपना नहीं बल्कि हकीकत होगी.
राजस्थान के जलदाय विभाग की मानंे तो मौजूदा जलापूर्ति व्यवस्था को बदलने के लिए सैकड़ों करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी. लिहाजा जोधपुर की मौजूदा पेयजल व्यवस्था को बदलने और 24 घंटे जलापूर्ति के लिए उसने फ्रांस की वित्तीय संस्था एजेंसी फ्रांसिस डेवलपमेंट से 440 करोड़ रुपये का कर्ज ले लिया है. जयपुर में भी यही तैयारी चल रही है. हाल ही में जापान की वित्तीय संस्था जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी ने राज्य सरकार को जयपुर में भी जलापूर्ति और सीवेज से जुड़े कामों के लिए कंपनी बनाने की सलाह दी है. उसकी सलाह पर पीएचईडी मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने सहमति जताई है. सिंह की सहमति के बाद जापानी संस्था की ओर से तैयार किए गए  बिजनेस प्लान को कैबिनेट में मंजूरी मिल सकती है. ऐसा हुआ तो जयपुर में कंपनी बनाने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा और फिर पीएचईडी की संपत्तियों और व्यवस्थाओं को कंपनी को सौंप दिया जाएगा. इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि सरकार अपनी सामाजिक जवाबदेही से बच जाएगी और कंपनी को भी मुनाफा कमाने का मौका मिल जाएगा. इस बारे में बात करने पर जल संसाधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव रामलुभाया कहते हैं, ‘यह पेयजल व्यवस्था में सुधार के लिए की जा रही एक जरूरी कोशिश है.’
लेकिन पीएचईडी तकनीकी कर्मचारी संघ को इस सुधार के पीछे एक बड़ा बाजार दिखाई देता है. इसीलिए कर्मचारी संघ ने राज्य की पेयजल व्यवस्था को गुपचुप तरीके से कंपनियों के हवाले किए जाने का आरोप लगाया है. कर्मचारी संघ के मुख्य संरक्षक महेंद्र सिंह कहते हैं, 'निजीकरण के लिए सरकार इतनी उतावली है कि उसने इस बड़े निर्णय से पहले जलदाय से जुड़े कर्मचारियों तक से चर्चा करना जरूरी नहीं समझा.'
दूसरी तरफ जल संरक्षण अभियान से जुड़े वरिष्ठ कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह राजस्थान के भीतर पानी जैसे सार्वजनिक क्षेत्र में कंपनियों की घुसपैठ को अपशकुन मानते हैं. वे कहते हैं, ‘पीपीपी निजीकरण का ही नया अवतार है और यह निजीकरण से भी खतरनाक है. निजीकरण में कंपनियां सीधा धन लगाती हैं जबकि पीपीपी में तो कंपनियां जनता के धन पर ही चांदी काटती हैं. यह गरीब जनता के धन पर कंपनी को बेहिसाब मुनाफा दिलाने की साझेदारी है.’ खंडवा में भी इसी साझेदारी के तहत लगने वाला 90 प्रतिशत धन जनता का ही है. मगर लागत का एक मामूली हिस्सा लगाने वाली कंपनी को मुनाफे का मालिक बनाया गया है. पानी में निजीकरण के शोधकर्ता रहमत बताते हैं कि 2010 में जब खंडवा की जलापूर्ति का काम विश्वा इन्फ्रास्ट्रक्चर्स को सौंपा गया तो परियोजना की लागत 115.32 करोड़ रुपये बताई गई. इस कुल लागत पर उसे निगम से 93.25 करोड़ रुपये की सब्सिडी मिली. कंपनी ने अपना सालाना संचालन खर्च 7.62 करोड़ रुपये बताया और पानी की दर 11.95 रुपये प्रति हजार लीटर तय की. यानी कुल दो लाख 15 हजार की आबादी वाले खंडवा में कंपनी को अपना संचालन खर्च निकालने के लिए सिर्फ 174. 7 करोड़ लीटर प्रतिदिन जलापूर्ति करनी है. यानी खंडवा के हर नागरिक के हिस्से में 81 लीटर प्रतिदिन ही पानी आना है और यह सरकारी मानक 135 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से काफी कम है. इसी तरह, नागपुर में जल कनेक्शन शुल्क तो 300 रुपये ही रखा गया है लेकिन उसके साथ विओलिया कंपनी घर तक लाइन बिछाने, मीटर, कनेक्शन सामग्री के अलावा सड़क की खुदाई और प्लंबर का खर्च भी कनेक्शनधारियों से ही ले रही है. कंपनी द्वारा एक कनेक्शन का खर्च करीब 12 हजार रुपये वसूला जा रहा है.
‘पीपीपी में कंपनियां जनता के धन पर ही चांदी काटती हैं. यह गरीब जनता के धन पर कंपनी को बेहिसाब मुनाफा दिलाने की साझेदारी है’
फिर भी राजस्थान का जलदाय विभाग राजधानी जयपुर के एक तिहाई हिस्से को जून से पहले 24 घंटे पानी पिलाने पर आमादा है. पीएचईडी के मुख्य अभियंता (मुख्यालय) अनिल भार्गव कहते हैं कि उनके कंधों पर भारी बोझ है. मई के अंत तक उन्हें नई जलापूर्ति से जुड़े सारे सर्वे निपटाने हैं, पाइपलाइनें बदलवानी हैं और साठ हजार से ज्यादा कनेक्शन लगवाने हैं.
मगर भार्गव ने जयपुर में सतत जलापूर्ति की उम्मीद जिस बीसलपुर बांध से बांधी है उस पर खुद उनका विभाग भरोसा नहीं करता. पीएचईडी की रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल के भीतर बीसलपुर बांध दम तोड़ देगा. भीषण गर्मियों में बीसलपुर बांध से जयपुर और अजमेर को पानी लेना भारी पड़ जाता है. तब जयपुर को दो दिन में एक बार और अजमेर को पांच दिन में एक बार पानी देने की नौबत आ जाती है. और वैसे भी बीसलपुर मुख्य तौर से सिंचाई परियोजना है और गर्मियों में किसानों को भी इसी से पानी चाहिए होता है.
फिर सवाल यह भी है कि अगर जलदाय विभाग 24 घंटे जल की धारा को कुछ देर के लिए धरातल पर उतार भी लाएगा तो भी क्या राजस्थान की भौगोलिक और आर्थिक स्थितियां उसे ऐसा करने की इजाजत देंगी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत के इस सबसे बड़े राज्य में देश की कुल आबादी का 5.5 प्रतिशत और पशुधन का 18.7 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि पानी सिर्फ एक प्रतिशत है. यहां बरसात का औसत भी 400-500 मिलीमीटर ही है. पूरे राज्य में चंबल को छोड़कर कोई बड़ी नदी भी नहीं है और आबादी का बड़ा भाग उस भूजल के भरोसे पर है जो हर साल दो मीटर नीचे जा रहा है.
यानी राजस्थान में जलस्रोतों की उपलब्धता इतनी नहीं है कि 24 घंटे पानी उपलब्ध कराया जा सके. वहीं 24 घंटे की अवधारणा के साथ भारी-भरकम खर्च भी जुड़ा हुआ है. इसमें हर समय जलापूर्ति बनाए रखने के लिए बड़े पैमाने पर बिजली और खर्चीले उपकरणों की जरूरत पड़ती है. साथ ही लीकेज रोकने के लिए भी पाइपलाइनों को बदलने की वजह से लागत काफी बढ़ जाती है. नागपुर के लिए यह लागत 1000 करोड़ रुपये है. इस लागत को भी पानी के बिलों और अन्य करों के साथ जनता से ही वसूला जाएगा. इसलिए राजस्थान जैसे सूखे और बीमारू राज्य में जलापूर्ति की इस खर्चीली प्रणाली के साथ कई तरह की आशंकाएं जुड़ी हुई हैं.
फिर भी 24 घंटे जलापूर्ति समर्थकों की अपनी दलीलें हैं. यहां कई वित्तीय संस्थाओं द्वारा आयोजित सेमिनारों में जोर दिया गया है कि पानी को वित्तीय संसाधन के तौर पर देखा जाए. इसमें पूर्ण लागत वापसी के साथ मुनाफे का भी प्रावधान रखा जाए. तभी तो निवेश बढ़ेगा और सेवाएं बेहतर होंगी.
मगर 24 घंटे सेवा को लेकर फिलहाल स्थानीय नागरिकों के बीच कौतूहल की स्थिति बनी हुई है. इनमें से कइयों के कुछ रोचक सवाल भी हैं. जैसे कि 24 घंटे नल में पानी रखने की जरूरत ही क्या है? क्या जरूरी है कि हर बार पानी का गिलास लेकर मटके की बजाय निगम के नल की ओर ही जाया जाए? या फिर नहाने के लिए अपनी टंकी की बजाय सीधे निगम की टंकी का पानी ही लिया जाए? जयपुर निवासी राजीव चौधरी कहते हैं, ‘जरूरत इस बात की है कि 24 घंटे में तयशुदा समय पर दो घंटे पानी दिया जाए. अगर आम आदमी को समय पर उसकी जरूरत का पानी दे दिया जाए तो उसे वैसे ही 24 घंटे पानी मिलता रहेगा. फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि 24 घंटे पानी उसे अपनी टंकी से मिला है या निगम की टंकी से.’ यानी सरकार द्वारा भुगतान करने लायक दरों पर सभी को पानी उपलब्ध करवाना अधिक महत्वपूर्ण है.
दरअसल राजस्थान में 24 घंटे जलापूर्ति का खाका मलेशिया से लौटे जलदाय विभाग के दल की रिपोर्ट के आधार पर खींचा गया है. विभागीय सूत्रों के मुताबिक 2010 में अभियंताओं का एक दल इस प्रकार की जलापूर्ति व्यवस्था में पानी की बचत और राजस्व में बढ़ोतरी को समझने के लिए मलेशिया गया था. उसी दल के एक सदस्य ने तहलका से बात की. उनके मुताबिक मलेशिया जलापूर्ति प्राधिकरण के सदस्यों ने उन्हें जानकारी दी थी कि 24 घंटे जलापूर्ति वहीं साकार हो सकती है जहां पर्याप्त पानी हो.
मगर इस जलापूर्ति को मंजूरी दिलाने के लिए यह बात रिपोर्ट से गोल कर दी गई. तहलका के पास मौजूद दस्तावेजों से भी राज्य सरकार की कथनी और करनी के बीच का अंतर सामने आता है. सरकार मौजूदा जलापूर्ति व्यवस्था में गैरराजस्व पानी के तौर पर होने वाली पानी की बर्बादी रोकने के लिए मलेशिया की 24 घंटे जलापूर्ति का हवाला देती है. मगर मलेशिया गई टीम द्वारा सरकार को भेजी रिपोर्ट के दस्तावेज बताते हैं कि खुद मलेशिया में गैरराजस्व पानी के तौर पर 30 प्रतिशत तक पानी की बर्बादी होती है. जानकारों के मुताबिक राजस्थान में गैरराजस्व पानी की असली जड़ तो अवैध जल कनेक्शन है. जयपुर में ही इन कनेक्शनों की संख्या एक लाख से अधिक है. अगर राज्य के लाखों अवैध कनेक्शन और बंद मीटर दुरुस्त किए जाएं तो पानी की बचत के साथ ही आय में भी बढ़ोतरी हो जाएगी. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि एक तो मलेशिया में पानी की उपलब्धता राजस्थान की तुलना में कहीं ज्यादा है, दूसरे वहां पर पानी निजी हाथ में देने वाली परियोजना के प्रभाव का पूरा आकलन अभी होना बाकी है. ऐसे में सवाल यह है कि वहां के अंधानुकरण से क्या मकसद हल होगा.
सरकार का यह भी दावा है कि वह राजस्थान में पहली बार 24 घंटे जलापूर्ति लेकर आ रही है. मगर आरटीआई से मिली जानकारी बताती है कि 2002 में जर्मनी की वित्तीय संस्था केएफडब्ल्यू की वित्तीय मदद से राजस्थान के ही चुरु में आपणी योजना के तहत 24 घंटे जलापूर्ति का सपना दिखाया जा चुका है. इस सपने की सच्चाई यह है कि बीते दस साल में यहां कभी 24 घंटे पानी नहीं दिया गया. लेकिन खुद अपनी ही सूचनाओं को नजरअंदाज करता जलदाय विभाग 24 घंटे मीठी नींद में डूबा लगता है. तभी तो उसने इस योजना को अजमेर, बीकानेर, उदयपुर सहित राज्य के 22 जगहों में शुरू करने का एलान किया है. पीएचईडी मुख्य अभियंता(ग्रामीण) वीके माथुर द्वारा यह एलान भी किया जा चुका है कि राज्य के किसी भी इलाके में, चाहे वह ग्रामीण ही क्यों न हो, जो अभियंता 24 घंटे जलापूर्ति लागू करेगा उसे विभाग सम्मानित करेगा और विदेश यात्रा भी कराएगा.

http://www.tehelkahindi.com/index.php?news=1128
नोट:जनहित में यह पोस्ट तहलका हिंदी के वेब पोर्टल से साभार ली गयी है. इसका कोई व्यावसायिक सरोकार नहीं है.

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